The mystery of why Rama exiled Sita to the forest ?
रामायण की कथा तो सभी ने सुनी या पढ़ी होगी। जिसमे श्री राम और माता सीता के जीवन से जुड़े पहलुओं को दिखाया गया है। उन्हीं में से एक कहानी में बताया गया है कि कैसे मर्यादा पुरुषोतम राम, अपनी पत्नी सीता को एक धोबी की बातों में आकर अयोद्धया छोड़कर जाने को कह दिया था। लेकिन क्या आपको पता है कि वो धोबी के रूप में जन्मा एक पक्षी था। जिसके श्राप की वजह से ही माता सीता को वन में भटकना पड़ा था। जी हां आपने सही सुना माता सीता को श्राप मिला था। आज हम आपको बाएंगे कि देवी सीता को किस पाप की सजा मिली, जो उन्हें वन वन भटकना पड़ा।
धरती की कोख़ से जन्मी थीं सीता
मिथिला नगरी में जनक राजवंश राज करता था। उन्हीं में से एक राजा सीरध्वज थे। एक बार यज्ञ के लिए वो ज़मीन जोत रहे थे । उसी समय वहां से एक छोटी कन्या निकलती है । इस सुंदर कन्या को देख कर राजा को बहुत खुशी हुई । उन्होंने उस कन्या को अपनी पुत्री बना लिया । उसका नाम सीता रखा । एक दिन सीता अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में खेल रहीं थीं। वहाँ उन्हें एक तोते का जोड़ा दिखाई दिया। जो बहुत ही खूबसूरत था । वे दोनों पक्षी एक पर्वत की चोटी पर बैठ कर बाते कर रहे थे। पृथ्वी पर श्री राम नाम से विख्यात एक बड़े सुंदर राजा होंगे। उनकी महारानी का नाम सीता होंगा। श्री राम, सीता के साथ कई वर्षों तक राज्य करेंगी। धन्य हैं वे जानकी देवी और धन्य हैं वे श्री राम।
माता सीता ने जानी, प्रभु राम की कहानी
तोते की ऐसी बातें सुनकर सीता ने सोचा कि ये दोनों तो मेरे ही बारे में बाते कह रहे हैं। इन्हें पकड़ कर मैं इनसे अपने जीवन से जुड़ी सारी बातें पूछ सकती हूं । इसीलिए उन्होंने अपनी सहेलियों से उन दोनों पक्षियों को पकड़ कर लाने को कहा । उनकी सहेलियां उस पर्वत पर गयीं और दोनों पक्षियों को पकड़कर ले आयीं।माता सीता उन पक्षियों से कहती हैं -कि ‘तुम दोनों बहुत सुंदर हो, देखो, डरो नहीं, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाउंगी। तुम बस मुझे ये बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आये हो? राम कौन हैं? और सीता कौन हैं? तुम्हें उनके बारे में कैसे पता है?
पक्षी जोड़े ने सुनाई श्री राम जन्म की कथा
माता सीता के पूछने पर दोनों पक्षी बताते हैं कि ,’एक बहुत विख्यात महर्षि ‘वाल्मीकि हैं। हम दोनों उन्हीं के आश्रम में रहते हैं। महर्षि ने रामायण नाम का एक ग्रन्थ लिखा है। जिसका पाठ उन्होंने अपने शिष्यों को भी कराया है। उन पक्षियों ने सीता को ये भी बताया कि इस ग्रंथ में महर्षि वाल्मीकि ने बताया है कि ‘महर्षि ऋष्यश्रंग के द्वारा किए गए पुत्रेष्टि-यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु – राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। ये चार मानव शरीर धारण कर पृथ्वी पर जन्म लेंगे । बड़े होने पर श्री राम, महर्षि विश्वामित्र और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ हाथ में धनुष लिए मिथिला आएंगे और शिव जी के धनुष को तोड़कर सीता से विवाह करेंगे ।
राम और सीता का विवाह
फिर उस पक्षी के जोड़े ने कहा , हे सुंदरी ! हमने तुम्हें सब कुछ बता दिया। अब हमें छोड़ दो.. हम जाना चाहते हैं।पक्षियों की बातें सुनकर माता सीता के मन में और भी बातें जानने की इच्छा हुई। उन्होंने उन दोनों से पूछा कि,‘राम कहाँ होंगे? वे किसके पुत्र हैं ? कैसे वो मिथिला आकर जानकी से विवाह करेंगे। नर तोता बोला कि, ‘श्री रामचन्द्र का मुख कमल के समान सुंदर।’ नेत्र बड़े बड़े और खिले हुए, नासिका ऊँची, पतली भुजाएँ घुटनों तक, गला शंख के समान होगा। मैं उनका क्या वर्णन करुं, जिनके गुणों का बखान, सौ मुख वाला भी नहीं कर सकता। दोनों पक्षी कहते हैं कि जानकी देवी धन्य हैं।जो जल्द ही रघुनाथ जी की पत्नी बनकर उनके साथ कई वर्ष तक राज करेंगी, लेकिन तुम कौन हो ?पक्षियों की बातें सुनकर सीता ने कहा कि-‘जिसे तुम लोग जानकी कह रहे हो, वो मैं ही हूं।
नर तोते की विनती
माता सीता उन्हें कहतीं हैं कि, ‘मैं तुम दोनों को तब ही छोड़ूँगी। जब श्री राम यहाँ आकर मुझसे विवाह करेंगे, तब तक तुम दोनों अराम से मेरे घर में रह सकते हो। ये सुनकर मादा तोता जानकी से कहती- ‘कि हम वन के पक्षी हैं हमें घर में सुख नहीं मिलेगा। मैं गर्भवती हूँ, मुझे जाने दो, मैं …अपने स्थान पर जाकर बच्चे पैदा करूँगी। आप चाहें तो उसके बाद फिर से यहाँ आ जाऊँगी। उसके कहने पर भी सीता जी ने उसे नहीं छोड़ा। तब उसके पति यानी नर तोते ने कहा -‘सीता ! मेरी पत्नी को छोड़ दो वो गर्भवती है।जब ये बच्चों को जन्म दे देगी, तब उसे लेकर मैं फिर तुम्हारे पास आ जाऊँगा।
माता सीता को पक्षी जोड़े का श्राप
तब माता सीता ने कहा , तुम आराम से जा सकते हो, लेकिन ये मुझे बहुत पसंद है। तुम घबराओ नहीं, मैं इसकी अच्छे से देखभाल करूंगी। जब सीता ने उस मादा तोते को छोड़ने से मना कर दिया, तब वो पक्षी दुखी हो गया। पक्षी दुबारा सीता जी से निवेदन करता है, कि मैं अपनी पत्नी के बिना जिंदा नहीं रह सकता। इसलिए इसे छोड़ दो… माता सीता ! तुम बहुत अच्छी हो, मेरी प्रार्थना मान लो।’ इस तरह उसने बहुत समझाया, लेकिन सीता ने उसकी पत्नी को नहीं छोड़ा, तब मादा पक्षी ने क्रोध में सीता को श्राप दिया– कि ‘अरी ! जिस प्रकार तू मुझे इस समय अपने पति से अलग कर रही है, वैसे ही तुझे भी स्वयं गर्भवती की अवस्था में श्री राम से अलग होना पड़ेगा।’
वन-वन भटकती रहीं माता सीता
कुछ दिन बाद पति से बिछड़ने के दुख में मादा पक्षी के प्राण निकल गए। पत्नी की मौत हो जाने पर नर पक्षी दुखी हो गया । फिर वो सीता जी से बोला कि, ‘मैं मनुष्यों से भरी श्री राम की नगरी अयोध्या में जन्म लूँगा। मेरे ही कारण तुम्हे पति के वियोग का दुख उठाना पड़ेगा। ये कह कर वो वहां से उड़ जाता है ।कुछ साल बाद उसका जन्म अयोध्या में धोबी के घर हुआ । उस धोबी के कारण ही सीता जी का अपमान हुआ । उन्हें अपने पति श्री राम से अलग होना पड़ा । उस तोते का श्राप ही सीता जी के पति श्री राम से बिछड़ने का कारण बना। इसीलिए जब माता सीता गर्भवती थीं तो उन्हें भी पति से दूर वन में रहना पड़ता है।
आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि – हमे हमारे कर्मों का फल हमें यहीं मिलता है । इस कहानी से ये बात सिद्ध भी हो जाती है, कि कर्म के फल से कोई भी नहीं बच सकता फिर चाहे वो भगवान राम हों या सीता । सभी को अपने कर्मों को फल भोगना पड़ता है ।