2016 में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत की ओर से पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक की गई । अब भारतीय वायु सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक 2 में पाकिस्तान के बालाकोट में हमला कर आतंकी कैंपस को निशाना बनाया । लेकिन क्या आप जानते हैं कि बालाकोट में हमले का एक ऐतिहासिक महत्व भी है। जी हां, भले ही लोग आज बालाकोट को आंतकी संगठन जैश ए मोहम्मद का बड़ा अड्डा मानते हों । लेकिन ये अभी से नहीं बल्कि पहले से ही ऐसे आंतक से जुड़े लोगों का ठिकाना रहा है।
आपको बता दें कि दक्षिण एशिया में बालाकोट ही जिहाद और ‘जिहादियों’ का पहला अड्डा था। जहां पर 1831 में महाराजा रणजीत सिंह की फौज ने सैयद अहमद शाह बरेलवी को हरा कर पेशावर पर कब्जा किया था। कहते हैं, उस समय शाह ने खुद को ही इमाम घोषित कर दिया था । पहली बार ‘जिहाद’ की शुरूआत वहीं से हुई । इसके बाद 1824 से 1831 तक शाह और उसके जिहादी लोग, बालाकोट में बहुत सक्रिय रहे ।
महाराजा रणजीत सिंह और सैयद अहमद शाह बरेलवी के बीच हुए युद्ध के बारे में बताने से पहले हम आपको बताते हैं कि आखिर महाराजा रणजीत सिंह हैं कौन और उन्होंने बालाकोट पर हमला क्यों किया? महाराजा रणजीत सिंह वही शख्स हैं, जिन्होंने एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य की स्थापना की।
बचपन से ही बहादुर और साहसी थे रणजीत सिंह
13 नवंबर, 1780 को उनका जन्म पंजाब के गुजरांवाला इलाके में हुआ । आज ये गुजरांवाला, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। उनके पिता महा सिंह और माता राज कौर थीं। पहले महाराजा रणजीत सिंह का नाम बुद्ध सिंह था। कहते हैं कि उनके पिता महा सिंह ने एक युद्ध में छत्तर सरदार को हराया था। उन्होंने जीत के बाद अपने बेटे का नाम रणजीत रख दिया। जिसका मतलब विजेता होता है। वो बचपन से ही बहुत बहादुर थे। उनके साहस के सामने दुश्मन अपने घुटने टेकते थे।
बचपन में चेचक की बीमारी के कारण, उनकी एक आंख की रोशनी चली गई।लेकिन उनकी बहादूरी में कोई कमी ना आई। उन्होंने अपना पहला युद्ध 10 साल की उम्र में किया । इतना ही नहीं उन्होंने महज 17 साल की उम्र में भारत पर हमला करने वाले आक्रमणकारी जमन शाह दुर्रानी को धूल चटा दी थी। फिर 12 अप्रैल, 1801 को 20 साल के रणजीत सिंह को पंजाब का महाराज बनाया गया। उनकी बहादूरी और उदारवादी होने की वजह से ही लोगों में उन्हें शेर-ए-पंजाब के नाम से नवाजा।
धर्मनिरपेक्ष शासक
रणजीत सिंह को एक धर्मनिरपेक्ष शासक माना जाता था। उनकी सेना में सभी धर्मों के लोग हुआ करते थे । जिसमें सिखों के अलावा हिंदू, मुस्लिम और यूरोपीय योद्धा भी शामिल थे। भले ही चेचक से उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी। जिसके लिए उनका कहना था कि ‘भगवान ने मुझे एक आंख दी है, इसलिए उससे दिखने वाले सभी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर और गरीब मुझे एक बराबर दिखते हैं। दलसअल सिख धर्म में भगवान के सामने हर किसी को बराबर ही माना जाता है। जिसको ध्यान में रखते हुए उन्होंने कभी भी किसी धर्म को बड़ा या छोटा नहीं समझा। इस का सबसे बड़ा सबूत ये है कि, जब एक बार मुस्लिमों का मुहर्रम त्योहार था। जिस रास्ते से, ताजिये का जुलूस निकलना था।
वहां एक पीपल का पेड़ था। जिसकी एक डाली बहुत नीचे थी। जिससे जुलूस में चलने वाले लोगों को बहुत परेशानी हो रही थी। हिन्दु धर्म में पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। उसे कभी तोड़ा या काटा नहीं जाता। लेकिन परेशानी के कारण मुस्लिम उस डाली को काटना चाहते थे । जिससे दोनों समुदाय के बीच तनाव पैदा हो गया।फिर मामला रणजीत सिंह के पास पहुंचा। तो उन्होंने एक तरकीब निकाली और कहा कि न तो पेड़ की डाली को काटने की जरूरत है और न जुलूस का रास्ता बदलने की। महाराजा रणजीत सिंह ने कहा कि जिस रास्ते पर डाली नीचे है, वहां खुदाई करके, कुछ समय के लिए एक अस्थायी सड़क बना दी जाए। जिससे जुलूस भी आसानी से निकल जाएगा और डाली को काटना भी नहीं पड़ेगा।
उदारता और दया का दूसरा रूप थे महाराजा रणजीत सिंह
महाराजा रणजीत सिंह बहुत ही दयालु और उदार थे। उनकी महानता के कई किस्से मशहूर हैं। उन्हीं में से एक है- बुढ़िया की कहानी । कहते हैं जब महाराजा रणजीत सिंह का जुलूस जा रहा था। उन्हें देखने के लिए सड़क के दोनों किनारे लोगों की बहुत भीड़ थी। उसी बीच एक बूढ़ी महिला कुछ लोगों को धक्का देते हुए आगे बढ़ी और घोड़े के सामने आ गई। वह महिला अपने साथ एक बर्तन लाई थी। उसने महाराजा के पैर से बर्तन को रगड़ना शुरू कर दिया। लोग ये देखकर हैरान हो गए। सभी जानना चाहते थे कि महिला ऐसे क्यों कर रही थी। महाराज ने महिला को पास बुला कर पूछा, कि वो ऐसा क्यों कर रही है? महिला का जवाब सुनकर महाराज हैरान हो गए।
महिला ने कहा, कि “लोग आपको पारस कहते हैं और मैंने सुना है कि पारस से लोहे को रगड़ने पर वह सोना बन जाता है। इसलिए मैं आपके पैर से इसे रगड़ रही थी जिससे मेरा बर्तन सोना बन जाए।” महिला की सादगी और साफगोई से वह काफी प्रभावित हुए और उसे ढेर सारे पैसे एवं बर्तन देने का आदेश दिया।
बच्चा और महाराजा
एक बार जब कुछ बच्चे बागीचे के पास खेल रहे थे। तभी उनकी नजर वहां लगे एख आम के पेड़ पर पड़ी, जिस पर आम लटक रहे थे। बच्चों ने सोचा कि ये आम बहुत मीठे होंगे, इन्हें ही तोड़कर खाया जाए। एक बच्चे ने आम तोड़ने के लिए सड़क से ईंट का एक टुकड़ा उठाया और पेड़ पर दे मारा । वहीं पास से ही महाराजा का काफिला जा रहा था। बच्चे की ईंट का टुकड़ा, महाराजा के सिर पर जा लगा।महाराजा के सिपाहियों ने उस लड़के को पकड़ लिया और महाराजा के सामने पेश किया। जब महाराजा ने उस बच्चे से पूछा कि क्या वजह थी जो उसने उन्हें ईंट मारी, तो बच्चे ने आम खाने वाली बात उन्हें बताई।
महाराजा रणजीत सिंह ने सोचा कि जब एक पेड़ , चोट खाने के बाद भी बहुत कुछ देता है, तो भला मैं इंसान होकर कैसे कुछ नहीं दे पा रहा हूं। उसी समय उन्होंने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि आम लाकर बच्चों के बीच बांटे जाएं। इससे उनके नम्र स्वभाव का पता चलता है।
मृत्युदंड की सज़ा नहीं
हैरानी की बात तो ये है कि किसी को भी उनके शासन में मृत्युदंड नहीं दिया जाता था। जहां दूसरे राजा, बात बात पर अपने विरोधियो को मौत की घाट उतार देते थे, वहीं रणजीत सिंह अपने विरोधियो के प्रति उदारता और दया का भाव रखते थे। वो जिस भी राज्य को जीत लिया करते थे । उसे अपने राज्य में मिला कर वहां के राजा को उसके जीवनयापन के लिए कोई न कोई जागीर जरूर दिया करते थे। जिससे उनकी महानता का पता चलता है ।
पेशावर पर कब्जा
ये तो हुई महाराजा रणजीत सिंह के जीवन की बात। अब आपको इनके द्वारा बालाकोट और पेशावर पर हमला करने की कहानी बताते हैं। जिसके बारे में पाकिस्तानी लेखिका आयशा जलाल ने अपनी किताब ‘पार्टिस ऑफ अल्लाह”(Parties of Allah’) में लिखा है। जिसके मुताबिक, सैयद अहमद शाह बरेलवी का सपना, भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामिक राज्यों को स्थापित करना था। जिसके लिए उसने खुद को इमाम घोषित कर दिया और महाराजा रणजीत सिंह की फौज के खिलाफ, हजारों ‘जिहादियों’ को इकठ्ठा किया। जब महाराजा रणजीत सिंह को पता चला कि कुछ जेहादी उनके राज्य में धुसपैठ करने वालें हैं, तो उन्होंने बालकोट हमला कर दिया। जिसमें शाह के साथ उसके सारे जेहादी भी मारे गए। उसके बाद ही महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को अपने राज्य में शामिल कर लिया।
तब अंग्रेजों ने दी थी जिहादियों को शह
जैसे आज पाकिस्तान ,भारत के खिलाफ जिहादियों को शह दे रहा है। वैसे ही 160 साल पहले अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के खिलाफ, सैयद अहमद शाह को शह दी थी। अंग्रेजों का मानना था कि शाह और उसके साथी, सिख राज को कमजोर कर देंगें। जिसका फायदा अंग्रेजों के मिलेगा। इसीलिए उन्होंने बालाकोट में ‘जिहादी’ गतिविधियों पर छूट दी थी।
जिहादियों का बड़ा गढ़ था बालाकोट
आपको बता दें कि बालाकोट, ‘जिहादियों’ का सबसे बड़ा गढ़ था। जहां सैयद अहमद शाह और उसके साथी अपने गलत इरादों को अंजाम देने की तैयारियां कर रहे थे ।लेकिन महाराजा रणजीत सिंह ने, उन्हें हरा कर उनके नापाक सपनों पर पानी फेंर दिया। आज भी बालाकोट में उनकी कब्रें मौजूद हैं। वहां इन्हें बहुत पवित्र माना जाता है।
आतंकियों का ट्रैनिंग सेंटर
2001 में अलकायदा के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमला करने के बाद , जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को वहां से अपना ठिकाना दूसरी जगह ले जाना पड़ा। बालाकोट का इतिहास को देखते हुए ही, जैश ने अपने आतंकवादियों के ट्रैनिंग के लिए यहां अपना ट्रैनिंग सेंटर खोला होगा। लेकिन वो ये भूल गए कि इसका अंत बहुत बुरा होता है और हर बार आतंकियों को मुंह की खानी पड़ती है। आपकी जानकारी के लिए बतां दें कि ये ट्रैनिंग सेंटर एक पहाड़ी की चोटी पर था जो आम लोगों की पहुंच से बहुत दूर थी । जिस पर भारतीय वायुसेना ने हमला किया और उसको तहस-नहस कर दिया।
तो ये थी शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की कहानी जिनकी बहादुरी के आगे बड़े- बड़े सूरमा ढ़ेर हो जाते थे। हमें कमेंट कर जरूर बताएं की आपको ये कहानी कैसी लगी? इसे शेयर और लाइक करना ना भूलें, धन्यवाद।
राजा रणजीत सिंह बोलते थे मुझे एक आंख इसलिए दी है ताकि मैं हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सबको बराबर की दृष्टि से देख संकू।
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