सोना एक ऐसी धातु है, जिसकी कीमत आज आसमान छू रही है। हम जानते हैं कि जितना सोना भारत में इस्तेमाल होता है उतना कहीं नहीं होता। भारत की औरतों के पास यही कुछ 21 हजार टन सोना है। यह संख्या दुनिया के प्रमुख 5 देशों के गोल्ड रिजर्व से भी ज्यादा है।
सोना एक तत्व है, मतलब इस पूरे संसार में इसे कोई नहीं बना सकता। जितना सोना यूनीवर्स में है, वह उतना ही रहेगा। लोगों ने सैकड़ों साल तक सोने को बनाने की कोशिश की, पर वह संभव न हो सका। सोने को बनने के लिए 79 प्रोटोन्स (Proton) और 118 न्यूट्राॅन्स (Neutron) को साथ आना पड़ता है। जिससे वह सोने के न्यूक्लियस (Nucleus) का निमार्ण करते हैं। यह प्रोसेस वास्तव में सिर्फ विशाल न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन (Nuclear Fusion Reaction) से होता है। जब एक निर्धारित संख्या में प्रोटोन और न्यूट्रान मिलकर नए-नए तत्वों को अस्तित्व में लाते हैं।
इस ब्रह्माण्ड में सोने की मात्रा भरपूर है, पर सौर मंडल के आसपास ऐसी कोई जगह नहीं जहां पर यह न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन हुआ हो। तो सबसे बड़ा सवाल आता है कि धरती पर सोना आया कहां से?
एक स्टडी के मुताबिक सोने का अस्तित्व दो न्यूट्रान स्टार्स के कोलिजन (Collision) से हुआ। पर इस ब्रह्माण्ड में उतने सारे न्यूट्रान स्टार्स के कोलिजन्स नहीं हुए, जितना कि इस ब्रहमांड में सोना होने का अनुमान है। तो ब्रह्माण्ड में इतना सोना कहां से आया?
दो न्यूट्रान स्टार्स के टकराने से कई सारे प्रोटोन्स और न्यूट्रान्स की अलग-अलग संख्या में कोलिजन होता है। उसके बाद नए-नए न्यूक्लियस अंतरिक्ष में भटकते रहते हैं। इसमें ऐसे तत्वों के न्यूक्लियस भी होते हैं, जिन्हें शायद ही वैज्ञानिकों ने फिजिकली कभी देखा हो, पर जैसा हमने पहले बताया कि इस ब्रह्माण्ड में उतने न्यूट्रान स्टार्स के कोलिजन्स ही नहीं हुए, जो हमें यह बता सकें कि इस यूनीवर्स में इतने सारे सोने का कारण वह खुद है। पर रुकिए अभी एक व्याख्या और बाकी है।
स्टार फ्लिपिंग सुपरनोवा ( Star Flipping Supernova)
यह एक अलग टाइप का सुपरनोवा है, जिसे मैग्नीटोरोटेशनल सुपरनोवा (Magnetorotational Supernova) कहा जाता है। इसमें एक तारा अपनी मृत्यु के वक्त बहुत तेजी से घूमने लगता है| जिससे उसमें बहुत ज्यादा मैग्नेटिक फील्ड पैदा होती है और इससे वह ब्लास्ट हो जाता है। इस ब्लास्ट में वह बहुत सारे तत्वों को अंतरिक्ष में फैला देता है, जिसमें ज्यादातर सोना ही होता है। इस तरह के स्टार्स काफी दुलर्भ होते हैं, जिसमें Magnetorotational Supernova होता है। यह तारे बहुत सारे सोने का उत्पादन करते हैं, पर यह भी ब्रहमांड में मौजूद इतने सारे सोने की व्याख्या नहीं कर सकते।
इस चीज को समझने के लिए वैज्ञानिक यह देख रहे हैं कि एक गैलेक्सी के फाॅरमेशन के बाद उसमें अलग – अलग तत्वों का उत्पादन कैसे होता है? फिलहाल यह तो पता चल गया कि तत्व कार्बन – 12 (Carbon-12) जैसे हल्के तत्व और भारी तत्व जैसे यूरेनियम-238 (Uranium-238) कैसे अस्तित्व में आए थे?
वैज्ञानिकों ने एक न्यूट्रान स्टार (Neutron star) के कोलिजन का एक सिमुलेशन तैयार किया था। इस सिमुलेशन में वैज्ञानिकों ने देखा कि कोलिजन में स्ट्रान्टियम (Strontium) नाम का तत्व निकल रहा था। फिर वैज्ञानिकों ने सीधे तौर पर टेलिस्कोप से दो न्यूट्राॅन स्टार्स के कोलिजन की जांच की और सच में उससे स्ट्रान्टियम ही निकल रहा था। इससे यह प्रमाणित हो गया कि किस तरह टेक्नालाॅजी से हम ब्रह्माण्ड की व्याख्या कर सकते हैं।
हमने Magnetorotational Supernova के सिमुलेशन से यह तो जान लिया कि यूरोपियम तत्व (Europium Element ) का अस्तित्व कैसे हुआ, पर ये समझ नहीं आया कि इतना सारा सोना कहां से आया। यह अब तक कोई एक्सप्लेन नहीं कर पाया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रहमांड में एक अनजान चीज है, जो इतने सोने का उत्पादन कर रही है, या फिर यह भी हो सकता है कि न्यूट्रान स्टार हमारे अनुमान से कई गुना ज्यादा सोना उत्पादित करता हो। तो जब तक ये रिसर्च न हो जाए तब तक यह राज ही रहेगा कि हमारे ब्रह्माण्ड में इतना सारा सोना कहां से आया।
ये भी पढ़ें:
दुनिया के ऐसे रहस्य जिन्हें सुलझाने में विज्ञान रहा नाकाम