ताजमहल को दुनियाभर में प्यार की निशानी माना जाता है।जो दुनिया के 7 अजूबे में से सबसे खूबसूरत भी है। जिसे रोज़ देखने हजारों सैलानी आते हैं। लेकिन इस प्यार की निशानी पर कई दावे किए गए हैं कि ताजमहल से पहले यहां एक शिवंमंदिर था। जिसे तोड़कर शाहजहां ने अपनी सबसे प्यारी रानी मुमताज की क्रब बनायी। एक महान इतिहासकार और मशहूर पत्रकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी एक किताब में दावा किया था कि ताजमहल एक शिव मंदिर है। इस किताब का नाम है – ‘ताजमहल, तेजोमहालय शिव मंदिर है’ ।तो चलिए इस किताब से जानते हैं तेजोमहालय की सच्चाई…
शाहजहां ने नहीं बनवाया – ताजमहल
पुरुषोत्तम नागेश ओक का मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था। वो तो पहले से ही बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया। जिसे अब शाहजहां और मुमताज का मकबरा माना जाता है। उन्होनें अपनी किताब में लिखा कि ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने के कई सबूत हैं। उनमे से पहला और सबसे अहम है- गुम्बद पर बना कलश । जो हिन्दू मंदिरों की तरह दिखाई देता है। 1800 ईस्वी तक ये कलश सोने का था और अब कांसे का। इस कलश पर एक चंद्रमा बना है। सूर्य की किरणें पड़ने पर ये चन्द्रमा और कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती है। जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न होता है ।
मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखी मनगढ़ंत कहानी
हमने इतिहास में पढ़ा है कि ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ । जो 1653 में बनकर तैयार हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज की मौत 1631 में हुई तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफनाया जा सकता था? जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ। पुरुषोत्तम की किताब के मुताबिक ये सब मनगढ़ंत कहानियां हैं जो अंग्रेजों और कुछ मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखीं होंगी।
शिव मंदिर बना मुमताज की कब्र
प्राचीनकाल में आगरा को अंगिरा कहते थे, क्योंकि ये ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। वे भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उस समय ही आगरा में 5 शिव मंदिर बनाए गए थे। लेकिन अब बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नाम के सिर्फ 4 ही शिव मंदिर बचे हैं। 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर का था। जिसे तेजोमहालय मंदिर या ताजमहल कहा जाता था । लेकिन इस 5वें शिव मंदिर को शाहाजहां ने कब्र में बदल दिया।
ताजमहल पहले था, तेजो महालय
इतिहासकार ओक की किताब के मुताबिक शाहजहां ने तेजोमहल में तोड़फोड़ और हेराफेरी कर उसे ताजमहल बना दिया। हिन्दू मंदिर ज्यादातर नदी या समुद्र के किनारो पर बनाए जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के किनारे पर बना है। जो कि शिव मंदिर के लिए एक अच्छी जगह है। जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं। उनके रंग में भी पीलापन आने लगा था जबकि बाकी पत्थरों का रंग बरकरार था। ये बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए थे। पहले ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला थी। जहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। जबकि कब्र में गौ शाला होना बुरा माना जाता है।
हिंदू मंदिर होने के सबूत
ताजमहल में चारों तरफ एक समान प्रवेशद्वार हैं, जो कि हिन्दू भवन निर्माण का एक विशेष तरीका है जिसे चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। हिन्दू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बदों का होना जरूरी होता है। ताजमहल के गुम्बद वाले क्षेत्र में भी आवाज़ गुंजती है। ताजमहल के गुम्बद में कमल की आकृतियों की नक्काशी है। आज हजारों ऐसे हिन्दू मंदिर हैं, जो कि कमल की आकृति से बने हैं। ताजमहल के गुम्बद में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं । जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के दीये रखे जाते थे। जो रात के समय मंदिर की भव्यता को बढ़ाने का काम करते थे। ताजमहल की चारों मीनारें बाद में बनाई गईं।
पत्र में है ताज के जर्जर होने की बात
पुरुषोत्तम अपनी किताब में लिखते हैं कि 1662 में शहजादे औरंगजेब द्वारा अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी। जिसमें उसने खुद ये लिखा है कि मुमताज को जहां दफन किया है। वहां की कई इमारतें बहुत पुरानी हो चुकी हैं । उनसे पानी चू रहा है। गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। जिसे औरंगजेब ने तुरंत अपने खर्च पर मरम्मत करने को कहा । बादशाह से सिफारिश भी कि बाद में इसकी और भी अच्छे से मरम्मत करवायी जाए। इससे ये पता चलता है कि शाहजहां के समय में ही ताज का आंगन इतना पुराना हो चुका था कि उसे तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत पड़ी थी।
‘बादशाहनामा’ में दफन है राज़
शाहजहां के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने ‘बादशाहनामा’ में मुगल शासक बादशाह के बारे में लिखा है कि शाहजहां की बेगम मुमताज-उल-मानी जिसे मृत्यु के बाद बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था। इसके 6 माह बाद तारीख 15 मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार को अकबराबाद आगरा लाया गया । फिर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए आगरा में स्थित एक सुंदर और शानदार भवन में दोबारा दफनाया गया। लाहौरी के मुताबिक राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आलीशान मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव में वे इसे देने के लिए तैयार हो गए । इस बात की पुष्टि के लिए यहां यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनों आदेश अभी तक रखे हुए हैं। जो शाहजहां द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे।
ताजमहल ही तेजो महालय
पुरषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल पर कई रिसर्च की जिससे पता चला कि ताजमहल को पहले ‘तेजो महालय’ कहते थे। इसमें ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं । जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ स्थापित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा ।शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने इस भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है, जो उसके शिव मंदिर के संस्कृत नाम ‘तेजोमहालय’ से मेल खाता है। ओक के मुताबिक हुमायूं, अकबर, मुमताज और सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में ही दफनाया गया था।
मंदिर का गर्भगृह है, कब्र वाला कमरा
‘ताजमहल’ को देखने वाले कई इतिहासकारों ने कहा था कि ताजमहल के अंदर कब्र वाले कमरे में सिर्फ सफेद संगमरमर के पत्थरों पर पुष्प और लता की नकाशी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है । संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित हैं और हिन्दू परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। इन सबूतों के आधार को सभी बेबुनियाद मानते हैं । और ताजमगल को ही मुमताज की कब्र मानते हैं। आज भी ताजमहल के शिवंमंदिर होने का रहस्य एक पहेली ही बना हुआ है।
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