Mysteries You Don’t Know About The Pyramids Of Egypt
पिरामिड का नाम सुनते ही ज़हन में सबसे पहले जो नाम आता है वो है मिस्त्र और आए भी क्यों ना, क्योंकि वही ऐसी जगह हैं जहां इतने सारे पिरामिड। कहते हैं ये पिरामिड अपने अंदर कई राज छिपाएं हुए हैं जिनके बारे में जाने के लिए वैज्ञानिक लंबे समय से जुटे हैं। तो चलिए जानते हैं आखिर वो कौन से रहस्य हैं जिनके बारे में हर कोई जानना चाहता है।
पिरामिड का इतिहास
कहते हैं कि एक समय था जब मिस्त्र की सभ्यता बहुत ही समृर्ध और विकसित थी। जनता अपने राजा को बेहद पसंद करती थी यही वजह है कि जब राजा की मत्यु हो जाती तो प्रजा उसे दफनाने के साथ जरूरी चीजें भी रख देती। राजाओं के शवों के साथ खाने पीने की चीजें, सोने के गहने, बर्तन और हथियार भी दफना दिये जाते थे। इतना ही नहीं कई बार तो राजा के सेवक और सेविकों को भी जबरन साथ में दफना दिया जाता था। प्राचीन मिस्त्र के लोगों को मानना था कि मरने के बाद इंसान दूसरी दुनिया में चला जाता है । जहां उनके साथ दफनाई चीजें काम आती थी…इनमें ना सिर्फ राजाओं के शवों को दफन किया जाता था बल्कि रानी के शव भी दफनाएं जाते थे।
ममी किसे कहते हैं और ये क्यों बनाई जाती थीं
क्या आप जानते हैं जिस मृत शरीर को दफनाया जाता था उसे क्या कहते हैं। दरअसल शव को दफनाने से पहले उसे कपड़े में अच्छे से लपेटकर सुरक्षित रख दिया जाता था। जिसे ममी कहते हैं। लेकिन कभी आपने सोचा है कि इन शवों को ममी क्यों कहते हैं और ये क्यों बनाई जाती थी। तो आज हम इसका खुलासा भी करेंगे।मिस्त्र में मृत शरीर पर तमाम तरह के लेप लगाकर उसे कपड़े से लपेटकर लंबे समय के लिए सुरक्षित रख दिया जाता था। इसी प्रोसेस को ममी कहते हैं।
ममी बनाने की शुरूआत मिस्त्र से हुई। मिस्र के निवासी अपने प्रियजनों और प्रिय जानवरों की मृत्यु के बाद उन्हें याद के तौर पर ममी बनाकर रख दिया करते थे। जानकर हैरानी होगी कि मिस्र में एक मिलियन से ज्यादा ममी हैं। दुनियाभर में इंसान और जानवरों की ममी आज भी पाई जाती हैं।
ममी का अर्थ क्या है
ज्यादातर लोगों का मानना है चूंकि ममी बनाने की शुरूआत मिस्त्र से हुई इसलिए यह प्राचीन मिस्र का शब्द है। लेकिन असल में ममी शब्द अरबी भाषा के मुमिया से बना है।अरबी भाषा में मुमिया का अर्थ होता है मोम या तारकोल के लेप से सुरक्षित रखी गई चीज़।
क्यों तैयार की जाती है ममी
प्राचीन समय से लेकर अब तक कई लोग पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं। यही वजह है कि मिस्त्र के लोग मृत व्यक्ति के शरीर को संभालकर रखते थे। ताकि अगले जन्म में वो उसी शरीर को पा सकें। इसी धारणा की वजह से लोगों ने ममी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। कहते हैं कि प्राचीनकाल में शुरू हुई यह प्रक्रिया आज भी जारी है।
कैसे तैयार की जाती है ममी
इस विडियो में हम आपको ये भी बताएंगे कि ममी को कैसे तैयार किया जाता था। प्राचीन समय में ममी बनाने में लगभग 70 दिन का समय लगता था । इसे बनाने के लिए धर्मगुरु और पुरोहितों के साथ-साथ विशेषज्ञ भी शामिल होते थे।
ममी बनाने के लिए सबसे पहले मृत शरीर की पूरी नमी को
खत्म किया जाता था। इस काम में कई दिन लगते थे। जैसे ही शरीर सूख जाता तो उसपर विशेष तौर से तैयार किया गया लेप, तेल और कई तरह के रोगन से मालिश की जाती थी। जिसके बाद शुरू होता था पट्टियां लपेटने का काम,मृत शरीर को पतले कॉटन की पट्टियों से अच्छी तरह लपेटा जाता था।
पट्टी लपेटने के बाद ममी को रखने के लिए शरीर के साइज के लकड़ी के ताबूत तैयार किए जाते थे। इतना ही नहीं इन ताबूतों को सुंदर तरीके से रंगकर मृत व्यक्ति या पशु के चेहरे जैसा रूप दे दिया जाता था। इसके बाद धर्मगुरु की मदद से शव संस्कार की प्रक्रिया आयोजित की जाती थी। मृत इंसान के ताबूत पर धार्मिक श्लोक आदि भी लिखे जाते थे । धार्मिक समारोह के बाद ताबूत को चबूतरे पर सम्मान के साथ रख दिया जाता था।
आधुनिक ममी
कहते हैं कि आज के समय में भी ममी तैयार की जाती है। अपने प्रिय लोगों और पशुओं के मृत शरीर को तैयार कर ममी बनाया जाता है। आप आज भी कई लोगों को ममी म्यूजियम में देख सकते हैं।
पिरामिड क्यों और कैसे बनाया जाता था
शव को दफनाने के बाद विशाल मकबरा बनाया जाता था जिसे पिरामिड कहते हैं। ये मकबरा त्रिभुजाकार होता था जिसे बड़ी बड़ी चट्टान काटकर खूबसूरती से बनाया जाता था। जानकारी के लिए बता दें मिस्त्र का ग्रेट पिरामिड ऑफ गीज़ा बेहद ही अदुभुत है। इसकी बनावट और रहस्य को जानने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं।
पिरामिड बनाना बेहद ही मुश्किल होता था क्योंकि उसे कुछ इस तरह तैयार करना होता था कि कोई उसे तोड़ ना सके। क्योंकि उनके अंदर रखे शव के साथ बेशकीमती चीजें दफनाई जाती थी। कोई चोर लुटेरा उन्हें चोरी ना कर सके इस वजह से पिरामिड को बड़ी सावधानी से तैयार किया जाता था। पिरामिड में शव को रखने का कक्ष पिरामिड के केंद्र में होता था।पिरामिड बनाने के लिए सबसे पहले बड़े बड़े पत्थरों को जमा किया जाता था फिर ऐसे मजदूरों की खोज की जाती थी जो पिरामिड बनाने में माहिर हो।
पिरामिड राजा की कब्र
सबसे पुराना पिरामिड सक्कारा Saqqara में स्थित है। इनमें सबसे पहला djoser का पिरामिड है। जिसे तीसरे राजवंश के दौरान 2630-2610 बीसी में बनवाया गया। वही गीजा का ग्रेट पिरामिड सबसे बड़ा होने के साथ साथ दुनिया के सात अजूबों में से एक हैं। इसे इतने बेहतरीन तरीके से बनाया गया कि आधुनिक समय में कोई इसे दोहरा नहीं सकता। इसकी उंचाई 139 मीटर है। ये पिरामिड Khufu राजा की कब्र हैं। पिरामिड को बनाने के लिए इतने मजबूत पत्थरों को इस्तेमाल किया गया है । ये आज भी सही सलामत है। पिरामिड केवल मिस्त्र में ही नहीं दुनियाभर में कई जगह हैं जैसे- चीन ,इंडोनेशिया, साउथ अमेरिका।
देखने में पिरामिड की बनावट जितनी अनोखी है उनका प्रभाव उतना ही अद्भुत। क्योंकि ज्यादा गर्मी होने पर भी पिरामिड के अदंर का तापमान नॉर्मल रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिरामिड के अंदर कुछ खास किस्म की तरंगे काम करती है। कहते है पिरामिड के अदंर बैठने से कई रोग दूर हो जाते हैं जैसे सिर दर्द, मानसिक रोग आदि। पिरामिड में रखे पानी को पीने से कई बीमारियों से काफी हद तक छुटकारा मिलता है। यही वजह है कि इसे पिरामिड पावर भी कहते हैं।
अनसुलझे रहस्य
वैसे तो दुनिया में जितने भी पिरामिड है सभी एक ही तरह से बनाए गए हैं लेकिन गीजा पिरामिड की संरचना कुछ अलग है। जैसा कि हम सभी जानते है कि पिरामिड की चार दिवारों से मिलकर बना होता है। लेकिन गीजा के great pyramid में आठ दीवारें मिलती हैं। कहते हैं कि उस समय के लोग architecture और मैथ्स में महारथी थी। यही वजह है कि उन्होंने इसे कुछ इस तरह तैयार किया आठ दीवारें सिर्फ वसंत और सर्द मौसम के सूर्य अस्त के दौरान ही दिखाई देती हैं। जिससे साफ जाहिर होता है कि मिस्त्र के लोग उस समय सूर्य चक्र और मैथ भी जानते थे। सोचने वाली बात ये हैं कि उन्होंने ये कला कहां से सीखी।
1.दुनियाभर में एक जैसे पिरामिड
कहते हैं प्राचीन समय में ना तो फोन की सेवा थी और ना ही यातायात साधन इतने सुगम थे कि एक जगह से दूसरी जगह आसानी से पहुंचा जा सके। तो ऐसे में सवाल उठता है कि जब ऐसी कोई टेक्नोलॉजी थी ही नहीं, तो फिर दुनियाभर के सारे मिरामिड एक से क्यों हैं।
2.अलग अलग आकार के पत्थर
पिरामिड को बनाने के लिए लगभग 20 लाख पत्थरों के टुकड़े का इस्तेमाल किया गया। जिसकी वजह से इमारत बनाना मुश्किल हो जाता है । हैरानी की बात ये है अलग अलग आकार के पत्थर होने के बावजूद ये पिरामिड आज भी जैसे के तैसे है। भूंकप या कोई अन्य प्रकृतिक आपदा आने के बावजूद इनपर कोई असर कैसे नहीं पड़ता।
3.वजनी पत्थर
पिरामिड बनाने में काफी भारी भरकम पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। एक पत्थर का वजन कम से कम 1 से 2 टन के बीच है तो सवाल ये हैं कि इसे बनाने वालों ने इतने भारी पत्थरों को कैसे उठाया होगा।
4. टेक्नोलॉजी का अभाव
प्राचीन समय में इतनी हाई टैक टेक्नोलॉजी नहीं थी जितनी आज है।लेकिन फिर भी उस समय लोगों ने पिरामिड को खूबसूरती और बेहरतरीन architect के साथ बनाया।हैरानी की बात ये हैं कि टेक्नोलॉजी का अभाव होने के बावजूद पिरामिड को इतनी कुशलता से कैसे बनाया गया।पिरामिड की संरचना का सबसे खास और मुख्य हिस्सा उसका उपरी भाग होता है जिसे सबसे बाद में बनाया जाता है। इस हिस्से को कैपस्टोन या टॉप स्टोन कहा जाता। ये इतना महत्वपूर्ण होता है कि इसे पहले बेशकीमती पत्थरों या सोने से बनाया जाता था। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि गीजा के मशहूर पिरामिड पर उपरी हिस्सा है ही नहीं। क्या इस पिरामिड को बिना कैपस्टोन के तैयार किया गया था या फिर कोई इसके बेशकीमती पत्थर को लूट ले गया।
तो देखा आपने कि मिस्र की सभ्यता कितनी बुद्धिमान थी जो टेक्नॉलाजी और आधुनिक ज्ञान का अभाव होने के बावजूद पिरमिड बनाने में कितनी पारंगत थी। ये कुछ ऐसे रहस्य थे जिनके बारे में जानकारी जुटाने के लिए रिसर्च की जा रही है।