Mushrooms On Mars? Controversial Paper Claims Evidence Fungi And Microbes Live On Mars Today: यह तो हम सभी जानते हैं कि सौर मंडल में पृथ्वी का बाद अगर किसी ग्रह पर जीवन की संभावनाएं सबसे ज्यादा तलाश की जा रही हैं, तो वह मंगल ग्रह है। इस लाल ग्रह को लेकर वैज्ञानिक तरह तरह की खोज कर रहे हैं, जिसे लेकर हाल ही में मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर भी भेजा गया था। हालालंकि इससे पहले भी मंगल ग्रह पर मिशन भेजे गए हैं, जिससे यह पता चलता है कि मंगल ग्रह पर मशरूम की फसल उग रही है, (Mushrooms on Mars) जी हां… आपने बिल्कुल सही सुना। लाल ग्रह पर मशरूम उग रहे हैं, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा वायरल हो रही हैं। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सच में मंगल पर एलियंस मौजूद हैं, जो वहां रहकर मशरूम की खेती कर रहे हैं। तो आइए जानते हैं इस विषय के बारे में विस्तार से-
Mars rover takes photos of MUSHROOMS growing on surface of Red Planet:
मंगल ग्रह पर मशरूम (Mushrooms on Mars)
अमेरिकी स्पेस एंजेसी नासा द्वारा साल 2004 में भेजे गए एक रोवर ने अपने कैमरे में मंगल ग्रह पर उग रहे मशरूम की तस्वीरें क्लिक की हैं, जिसे देखकर हर कोई हैरान है। दरअसल लाल ग्रह की सतह पर अब तक जितनी भी रिसर्च की गई है, उससे यही पता चलता है कि मंगल का वायुमंडल अभी जीवन लायक तैयार नहीं हुआ है। ऐसे में लाल ग्रह की सतह पर मशरूम का उगना वैज्ञानिकों को हैरान कर देने वाली घटना साबित हो रही है। दरअसल सालों पहले खींची गई इस तस्वीर पर नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में दोबारा से स्टडी की है, जिसके जरिए यह पता चला कि मशरूम की आकृति की तरह दिखाई देने वाली चीज हैमेटाइट कॉनक्रिशन (HAEMATITE CONCRETIONS) हैं। इन हैमेटाइट कॉनक्रिशन को पैदा होने के लिए लोहे और ऑक्सीजन की जरूरत होती है, जो लोहे और ऑक्सीजन के मिश्रण से बनते हैं।
इस तरह के हैमेटाइट कॉनक्रिशन का आकार गोल होता है, जिनके अंदर काफी ज्यादा मात्रा में मिनरल भरा होता है। मंगल ग्रह पर इस तरह के हैमेटाइट कॉनक्रिशन को पैदा हुए काफी लंबा समय बीत चुका है, जो देखने में हू-ब-हू मशरूम की तरह दिखाई देते हैं। जब मंगल ग्रह की सतह पर गर्मी बढ़ने लगती है, तो सतह की नमी भाप बनकर उड़ जाती है। इस दौरान लोहे का अवयव उस नमी को पकड़ लेता है और फिर हवा में एक गोले का आकार ले लेता है, इस प्रक्रिया से बनने वाली वस्तु को ही हैमेटाइट कॉनक्रिशन नाम दिया गया है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हैमेटाइट कॉनक्रिशन का निर्माण ज्वालामुखीय गतिविधि का परिणाम भी हो सकता है, जो मंगल ग्रह की सतह पर होते रहते हैं।
साल 2004 में जब ऑपरच्यूरिटी रोवर (Opportunity Rover) ने मंगल ग्रह की सतह पर लैंड किया था, तो उस समय हैमेटाइट कॉनक्रिशन की मात्रा काफी ज्यादा थी। यह वस्तु मंगल की सतह पर चारों तरफ मौजूद थी।, इतना ही नहीं जब लाल ग्रह की सतह को खोदा गया तो उसके अंदर से भी हैमेटाइट कॉनक्रिशन की गोलाकार आकृति बाहर आई थी। ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि हैमेटाइट कॉनक्रिशन का मंगल ग्रह की सतह पर उगना एक रसायनिक प्रक्रिया है, जिसे एलियंस के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।
हैमेटाइट कॉनक्रिशन नहीं है जीवन का संकेत
मंगल ग्रह पर हैमेटाइट कॉनक्रिशन के पैदा होने से यह बात साबित नहीं होती है कि लाल ग्रह पर जीवन की संभावनाएं मौजूद हैं, क्योंकि इस विषय पर वैज्ञानिकों के अलग अलग मत देखने को मिलते हैं। कई वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तरह की वस्तुओं का निर्माण रासयनिक प्रक्रिया के कारण होता है, जो देखने में जैविक या कार्बनिक आकृति लगती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अगर कोई चीज जीवित या जीवों की तरह दिखाई दे, तो वह सच में जीवन का संकेत हो। क्योंकि इस तरह की चीजों का पैदा होना ग्रह के तापमान और धातु आदि पर निर्भर करता है, जिसके जरिए जीवन की संभावनाओं का पता नहीं लगाया जा सकता है।
आपको बता दें कि साल 1970 में नासा के वाइकिंग रोबोटिक लैंडर (VIKING ROBOTIC LANDER) ने मंगल ग्रह की सतह पर कई तरह की जांच और प्रयोग किए थे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि लाल ग्रह पर को सूक्ष्म जीव मौजूद है या नहीं।
उस दौरान रोबोटिक लैंडर ने मंगल ग्रह की मिट्टी पर रेडियोएक्टिव कार्बन-14 रसायन डाला था, जिसके जरिए यह पता किया जा सकता था कि अगर मंगल की सतह पर कोई जीवित जीव या माइक्रोब्स होगा तो वह रेडियोएक्टिव कार्बन-14 को सोख लेगा। लेकिन अगर इस प्रयोग के दौरान मंगल की मिट्टी में किसी तरह का जीवित जीव होने की पुष्टि नहीं होती है, तो रेडियोएक्टिव कार्बन-14 भी धीरे धीरे हवा में गायब हो जाएगा। हालांकि नासा का रोबोट जिस चेंबर में जांच का काम कर रहा था, वहां प्रयोग के दौरान अचानक से गर्मी बढ़ने लगी थी। वैज्ञानिकों को लगा कि ज्यादा गर्मी बढ़ने से माइक्रोब्स मर सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों की सोच के परे उस प्रयोग के दौरान अजीब सी घटना घटी।
जिस चेंबर के अंदर रोबोट प्रयोग कर रहा था, वहां कार्बन-14 की मात्रा डालने के बाद मंगल ग्रह की मिट्टी उसके साथ रिएक्ट करने लगी। इस रिएक्शन की वजह से मिट्टी में कार्बन-14 की मात्रा पहले के मुकाबले बढ़ने लगी, जबकि वैज्ञानिकों का मानना था कि मंगल के वातावरण की वजह से मिट्टी में कार्बन-14 डालते ही वह खत्म हो जाएगा। आखिर में चेंबर का तापमान इतना ज्यादा बढ़ गया कि अगर चेंबर के अंदर पानी मौजूद होता, तो वह भी उबलने लगता। नासा द्वारा किए गए उस प्रयोग का कोई भी स्पष्ट नतीजा सामने नहीं आया, हालांकि उस प्रयोग को लेकर वैज्ञानिकों के बीच आपसी मतभेद आज तक जारी है।
मंगल ग्रह पर नई खोज
हाल ही में मंगल ग्रह पर बहुत ही कम मात्रा में मीथेन गैस मिलने की पुष्टि की गई थी, जिसकी मौजूदगी मंगल ग्रह पर सूक्ष्म जीवों के जीवन की तरफ इशारा करती है। दरअसल धरती पर सूक्ष्म जीवों के पनपने के लिए मीथेन गैस ही जिम्मेदार होती है, ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल ग्रह पर मीथेन की मौजूदगी जीवन की संभावनाओं को बढ़ावा देने का काम करती है। आपको बता दें कि अकार्बनिक प्रक्रियाओं की वजह से ग्रह पर मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जबकि कई मामलों में तापमान बढ़ने और पत्थरों के गर्म होने पर भी मीथेन गैस का रिसाव शुरू हो जाता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नासा के वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर किस तरह की खोज को अंजाम देते हैं और उसका धरती वासियों के जीवन पर क्या असर पड़ता है।
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